Monday, 18 August 2014

१८. माते दर्शन मात्रे प्राणी उद्धरिसी

 
माते दर्शन मात्रे प्राणी उद्धरिसी  |
हरीसी पातक अवघें जग पावन करिसी  |
दुष्कर्मी मी रचिल्या पापांच्या राशी  |
हर हर आतां स्मरतों गति होईल कैसी  ॥ १ ॥

जय देवी जय देवी जय गंगामाई  |
पावन करिं मज सत्वर विश्वाचे आई  ॥ धृ ॥

पडले प्रसंग तैशी कर्में आचरलो  |
विषयांचे मोहानें त्यातचि रत झालो  |
ज्याचे योगें दुष्कृत सिंधुंत बुडालो  |
त्यांतून मजला तारिसी ह्या हेतूने आलो  ॥ २ ॥ जय देवी...

निर्दय यमदूत नेती त्या समयी राखी  |
क्षाळी यमधर्माच्या खात्यातील बाकी  |
सत्संगति जन अवघे तारियलें त्वा की  |
उरलों पाहे एकचि मी पतितांपैकी  ॥ ३ ॥ जय देवी...

अघहरणे जय करुणे विनवीतसे भावें  |
नोपेक्षी मज आतां त्वत्पात्री घ्यावे  |
केला पदर पुढें मी मज इतुकें द्यावे  |
जीवें त्या विष्णुच्या परमात्मनि व्हावे  ॥ ४ ॥
जय देवी…

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