Sunday 17 August 2014

११. दुर्गे दुर्घट भारी

दुर्गे दुर्घट भारी तुजविण संसारी  |
अनाथनाथे अंबे करुणा विस्तारी  ॥
वारी वारी जन्ममरणांतें वारी  |
हारी पडलो आता संकट निवारी  ॥ १ ॥

जय देवी जय देवी महिषासुरमर्दिनी  |
सुरवरईश्वरवरदे तारक संजीवनी  ॥ धृ ॥

त्रिभुवनभुवनी पाहता तुजऐसी नाही  |
चारी श्रमले परंतु न बोलवे कांही  ॥
साही विवाद करिता पडिले प्रवाही  |
ते तूं भक्तांलागी पावसि लवलाही  ॥ २ ॥  जय देवी...

प्रसन्नवदने प्रसन्न होसी निजदासा  |
क्लेशांपासुनि सोडवी तोडी भवपाशा  ॥
अंबे तुजवांचून कोण पुरविल आशा  |
नरहरि तल्लीन झाला पदपंकजलेशा  ॥ ३ ॥  जय देवी...



0 comments:

Post a Comment

 
Design by Wordpress Theme | Bloggerized by Free Blogger Templates | free samples without surveys